Thursday, 5 August 2021

पृथ्वीराज चौहान कहानी इतिहास जीवन परिचय| Prithviraj Chauhan history in hindi

 पृथ्वीराज चौहान का इतिहास कहानी वंशज संयोगिता प्रेम कहानी जयंती (जन्म, मृत्यु, वंशज) (Prithviraj Chauhan history in hindi)

पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है. चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे. महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे राजनीति का शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया . पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था . पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे. उन्होने अपने बाल्य काल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था.

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास कहानी जीवन परिचय

पृथ्वीराज चौहान का जन्म :

धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ. पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और कपूरी देवी की संतान थे. पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे, परंतु वे बचते चले गए.  परंतु मात्र 11 वर्ष की आयु मे पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था, उसके बाद भी उन्होने अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अन्य राजाओ को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते गए.

पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे. चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे . चंदबरदाई बाद मे दिल्ली के शासक हुये और उन्होने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मे पुराने किले नाम से विद्यमान है.

Prithviraj chauhan 

पृथ्वीराज चौहान और उनका दिल्ली पर उत्तराधिकार :

अजमेर की महारानी कपुरीदेवी अपने पिता अंगपाल की एक लौती संतान थी. इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी, कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका शासन कौन संभालेगा. उन्होने अपनी पुत्री और दामाद के सामने अपने दोहित्र को अपना उत्तराअधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की और दोनों की सहमति के पश्चात युवराज पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. सन 1166 मे महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान की दिल्ली की गद्दी पर राज्य अभिषेक किया गया और उन्हे दिल्ली का कार्यभार सौपा गया.

पृथ्वीराज चौहान और कन्नोज की राजकुमारी संयोगिता की कहानी

पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी राजस्थान के इतिहास मे अविस्मरणीय है . दोनों ही एक दूसरे से बिना मिले केवल चित्र देखकर एक दूसरे के प्यार मे मोहित हो चुके थे. वही संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ ईर्ष्या भाव रखते थे, तो अपनी पुत्री का पृथ्वीराज चौहान से विवाह का विषय तो दूर दूर तक सोचने योग्य बात नहीं थी. जयचंद्र केवल पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का मौका ढूंढते रहते थे, यह मौका उन्हे अपनी पुत्री के स्व्यंवर मे मिला. राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्व्यंवर आयोजित किया| इसके लिए उन्होने पूरे देश से राजाओ को आमत्रित किया, केवल पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर. पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उन्होने स्व्यंवर मे पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रखी. परंतु इसी स्व्यंवर मे पृथ्वीराज ने संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण भरी महफिल मे किया और उन्हे भगाकर अपनी रियासत ले आए. और दिल्ली आकार दोनों का पूरी विधि से विवाह संपन्न हुआ. इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और भी बढ़ गयी.

जन्म

1166

मृत्यु

1192

पिता

सोमेश्र्वर चौहान

माता

कपूरी देवी

पत्नी

संयोगिता

जीवन काल

43 वर्ष

पराजय

 मुहम्मद
गौरी से


पृथ्वीराज की विशाल सेना :

पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय थी, जिसमे 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे. कहा जाता है कि उनकी सेना बहुत ही अच्छी तरह से संगठित थी, इसी कारण इस सेना के बूते उन्होने कई युध्द जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए. परंतु अंत मे कुशल घुड़ सवारों की कमी और जयचंद्र की गद्दारी और अन्य राजपूत राजाओ के सहयोग के अभाव मे वे मुहम्मद गौरी से द्वितीय युध्द हार गए.

पृथ्वीराज और गौरी का प्रथम युध्द :

अपने राज्य के विस्तार को लेकर पृथ्वीराज चौहान हमेशा सजग रहते थे और इस बार अपने विस्तार के लिए उन्होने पंजाब को चुना था. इस समय संपूर्ण पंजाब पर मुहम्मद शाबुद्दीन गौरी का शासन था, वह पंजाब के ही भटिंडा से अपने राज्य पर शासन करता था. गौरी से युध्द किए बिना पंजाब पर शासन नामुमकिन था, तो इसी उद्देश्य से पृथ्वीराज ने अपनी विशाल सेना को लेकर गौरी पर आक्रमण कर दिया. अपने इस युध्द मे पृथ्वीराज ने सर्वप्रथम हांसी, सरस्वती और सरहिंद पर अपना अधिकार किया. परंतु इसी बीच अनहिलवाड़ा मे विद्रोह हुआ और पृथ्वीराज को वहां जाना पड़ा और उनकी सेना ने अपनी कमांड खो दी और सरहिंद का किला फिर खो दिया. 



अब जब पृथ्वीराज अनहिलवाड़ा से वापस लौटे, उन्होने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये. युध्द मे केवल वही सैनिक बचे, जो मैदान से भाग खड़े हुये इस युध्द मे मुहम्मद गौरी भी अधमरे हो गए, परंतु उनके एक सैनिक ने उनकी हालत का अंदाजा लगते हुये, उन्हे घोड़े पर डालकर अपने महल ले गया और उनका उपचार कराया. इस तरह यह युध्द परिणामहीन रहा. यह युध्द सरहिंद किले के पास तराइन नामक स्थान पर हुआ, इसलिए इसे तराइन का युध्द भी कहते है. इस युध्द मे पृथ्वीराज ने लगभग 7 करोड़ रूपय की संपदा अर्जित की, जिसे उसने अपने सैनिको मे बाट दिया.

मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान का दूसरा विश्व युध्द :

अपनी पुत्री संयोगिता के अपहरण के बाद राजा जयचंद्र के मन मे पृथ्वीराज के लिए कटुता बडती चली गयी तथा उसने पृथ्वीराज को अपना दुश्मन बना लिया. वो पृथ्वीराज के खिलाफ अन्य राजपूत राजाओ को भी भड़काने लगा. जब उसे मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज के युध्द के बारे मे पता चला, तो वह पृथ्वीराज के खिलाफ मुहम्मद गौरी के साथ खड़ा हो गया| दोनों ने मिलकर 2 साल बाद सन 1192 मे पुनः पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया. यह युध्द भी तराई के मैदान मे हुआ. इस युध्द के समय जब पृथ्वीराज के मित्र चंदबरदाई ने अन्य राजपूत राजाओ से मदत मांगी, तो संयोगिता के स्व्यंबर मे हुई घटना के कारण उन्होने ने भी उनकी मदत से इंकार कर दिया. ऐसे मे पृथ्वीराज चौहान अकेले पढ़ गए और उन्होने अपने 3 लाख सैनिको के द्वारा गौरी की सेना का सामना किया . क्यूकि गौरी की सेना मे अच्छे घुड़ सवार थे, उन्होने पृथ्वीराज की सेना को चारो ओर से घेर लिया| ऐसे मे वे न आगे पढ़ पाये न ही पीछे हट पाये. और जयचंद्र के गद्दार सैनिको ने राजपूत सैनिको का ही संहार किया और पृथ्वीराज की हार हुई. युध्द के बाद पृथ्वीराज और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया . राजा जयचंद्र को भी उसकी गद्दारी का परिणाम मिला और उसे भी मार डाला गया. अब पूरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नोज मे गौरी का शासन था, इसके बाद मे कोई राजपूत शासक भारत मे अपना राज लाकर अपनी वीरता साबित नहीं कर पाया.

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु (Prithviraj Chauhan death):

गौरी से युध्द के पश्चात पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य ले जाया गया . वहा उन्हे यतनाए दी गयी तथा पृथ्वीराज की आखो को लोहे के गर्म सरियो द्वारा जलाया गया, इससे वे अपनी आखो की रोशनी खो बैठे. जब पृथ्वीराज से उनकी मृत्यु के पहले आखरी इच्छा पूछी गयी, तो उन्होने भरी सभा मे अपने मित्र चंदबरदाई के शब्दो पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की इच्छा प्रकट की. और इसी प्रकार चंदबरदई द्वारा बोले गए दोहे का प्रयोग करते हुये उन्होने गौरी की हत्या भरी सभा मे कर दी. इसके पश्चात अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त कर दी . और जब संयोगिता ने यह खबर सुनी, तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया.

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